धार्मिक क्रियायों की वैज्ञानिक पद्धति- एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.69919/y7re0v69Keywords:
लोकाचार, धार्मिक अनुष्ठान, सदाचार, विज्ञान, तत्त्वAbstract
भारत के अतिप्राचीन ज्ञानपद्धति का निर्माण एवं प्रसार केवल गुरूकुलों में ही नही किन्तु लोकस्वीकृति के द्वारा भी पुष्पित एवं पल्लवित हुआ है। प्रथमदृष्टया यह भले उत्तराधिकार से प्राप्त संस्कार,लोकाचार,पारितोषिक अथवा दंड की प्रत्याशा के कारण स्वीकार्य माना गया हो किन्तु ऐसी स्वीकृति लोभाचार अनादिकाल से वर्तमान पर समान भाव में स्वीकार्य हो यह पूर्णतया असंभव है। प्रस्तुत यह आलेख उन कारणों की विवेचना के उद्देश्य से युक्त है जो इन संस्कारों को काल निर्बाधित बनाये हुये है। साथ ही आलेख यह भी समझाने का प्रयास करता है कि वे कौन से तत्त्व है जो सदाचार,लोकाचार एवं मानवीय एवं प्राकृतिक व्यवहारों में सामंजस्य साहचर्य एवं समन्वय स्थापित किये है।
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Copyright (c) 2024 डॉ धीरेन्द्र मिश्रा , डॉ श्रीश कुमार तिवारी (Author)

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