गुजराती दलित कविता: एक विहंगावलोकन

Authors

  • डॉ. अमृत परमार एच. के. आर्ट्स कॉलेज, अहमदाबाद Author

DOI:

https://doi.org/10.69919/m53f7y08

Abstract

हमारे यहाँ ‘जैन साहित्य’, ‘चारणी साहित्य’ ऐसे शब्द का प्रयोग होता है । जैन साहित्य अर्थात् जैन द्वारा सर्जित साहित्य । इसी प्रकार चारणी साहित्य अर्थात् चारणों के द्वारा लिखा गया हो, ऐसा अर्थ होता है । और फिर जैन साहित्य में अधिकतर जैन धर्म की असर दिखाई देती है । इसी प्रकार चारणी साहित्य में भी विषयवस्तु, प्रस्तुति, छंद इत्यादि के विषय में चारणी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण शैली है, जिससे यह अलग पड़ता है । इसी प्रकार ‘दलित साहित्य’ भी गुजराती साहित्य का महत्त्वपूर्ण पहचान है । ‘दलित’ शब्द यह सामाजिक संज्ञा है । एक निश्चित परिस्थिति की पहचान है, एवं इस स्थिति में लिखा गया साहित्य यह दलित साहित्य है ।

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References

प्रत्यायन: भी. न. वणकर

गुजराती दलित कविता: प्रा. यशवंत वाघेला

विदीत: हरिश मंगलम्

नया मार्ग: ईन्दुकुमार जानी

हयाती: विशेषांक

Published

19-02-2024

Issue

Section

Articles

How to Cite

परमार अ. (2024). गुजराती दलित कविता: एक विहंगावलोकन. Divyayatan - A Journal of Lakulish Yoga University, 1(1), 15-17. https://doi.org/10.69919/m53f7y08